मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी का नारा क्या आचार संहिता का उलंघ्घन नहीं है ?


डॉ. नरेश कुमार चौबे देश की राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनावों को लेकर शंखनाद हो चुका है। एक बार फिर केजरीवाल मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी को लेकर चुनाव मैदान में हैं। दिल्ली की जनता को मुफ्तखोरी का सपना पांच साल जमकर बेचा और अब फिर मुफ्त खोरी का नारा लेकर चुनाव मैदान में हैं। दिल्ली की जनता या तो नादान है या फिर जानना ही नहीं चाहती कि इस मुफ्तखोरी में वो क्या खोती जा रही है। बिजली, पानी, और लोकल बसों में मुफ्त खोरी का बोझ कहीं ना कहीं दिल्ली की जनता पर ही पड़ने वाला है या फिर पड़ रहा है। एक ऐसा व्यक्ति जो सत्ता के लिए कोई भी झूठ बोल सकता हो, एक निष्पक्ष आन्दोलन का गला घोट सकता हो, अन्ना जैसे वृद्ध व्यक्ति के कान्धों पर चढ़कर सत्ता की सीढ़ी चढ़ा हो, उस पर कैसे भरोसा किया जा सकता है। अपने राजनीतिक स्वार्थ को साधने के लिए चारा घोटाले के अभियुक्त लालू यादव की गोद में बैठने से गुरेज नहीं करता, ममता से गलबहैये करने को आतुर रहता हो, कांग्रेस जैसी भ्रष्ट सरकार की गोद में बैठकर राजनीति करना चाहता हो। उस पर कैसे और क्यों दिल्ली की जनता विश्वास जता रही है।



क्या केवल और केवल इसलिए कि वो दिल्ली सरकार को आकूत कर्जे में डुबाकर मुफ्त में बिजली पानी बांट रहा है|ग्रेस सरकार के काले कारनामों की डायरी केजरीवाल के पास हुआ करती थी, आज वो डायरी खो गई है। निर्भया काण्ड को लेकर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर उगली उठाने वाला आज कांग्रेस से हाथ मिलाने को आतुर क्यों है। केजरीवाल के आन्दोलन के साथी क्यों केजरीवाल का साथ छोड़ गये? क्या कभी इस पर दिल्ली की जनता विचार करेगी? अपने आपको आम आदमी कहने वाला क्यों आज भारी सुरक्षा और लर और लग्जरी लाइफ जी रहा है। दिखावे के लिए चप्पल ओर मफलर आये थे, आज वो मफलर और चप्पल कहां गये।


जिन स्कलों की बात केजरीवाल जी कर रहे हैं, दिल्ली की जनता को याद रहे कि वो सपना शीला दीक्षित का था। दिल्ली का विकास सींगापुर की तर्ज पर हो ये सपना शीला दीक्षित का था। दिल्ली के विकास में दो ही मुख्यमंत्री याद किये जाते रहेंगे, स्व. मदन लाल खुराना और शीला दीक्षित । केजरीवाल ने अपने शासन काल में काम तो किये हैं लेकिन दिल्ली के विकास को अवरूद्ध करने के लिए मोहल्ला क्लीनिक के नाम पर बंदरबांट की गयी जबकि दिल्ली सरकार के अधीन चलने वाले अस्पताल आज भी विचारणीय हालातों में हैं केवल और केवल अपनी राजनीति चमकाने के लिए केन्द्र सरकार का विरोध, क्या यही राज्य सरकारों का काम है?


दिल्ली का उपमुख्यमंत्री जो कि ट्वीटर पर गलत बयानी कर दंगा भड़काने का प्रयास करता है। दिल्ली पुलिस पर बसें जलाने का आरोप लगाता है। कौन सी राजनीति आप लोग कर रहे हैं? सी ए ए और एन आर सी पर आप पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हैं। हो सकता है कि दिल्ली में वोटों का कुछ प्रतिशत कुछ सीटों पर आपके बयानों के कारण आपकी झोली में आ गिरे या फिर आप दिल्ली की जनता को बरगलाने में एक बार फिर सफल हो जायें और दिल्ली की सत्ता फिर आपके हाथों में हों लेकिन ये दिल्ली की जनता का दुर्भाग्य ही होगा कि एक ऐसे व्यक्ति के हाथों में दिल्ली की सत्ता की बागडोर सोंप दे जो कि अपने आपको अतिरिक्त आयकर आयुक्त बताता हो और साल में 100 दिन भी अपने कार्यालय गया ही न हो। जो अपने सरकारी कार्यकाल के दौरान सरकार का नहीं हुआ, जिसने अपने कर्तव्य के प्रति तब कभी ईमानदारी नहीं दिखाई, उससे आज कैसे उम्मीद की जा सकती है।


मैं तो अपने लेख के माध्यम से दिल्ली चुनाव आयुक्त से यही कहना चाहूंगा कि मुफ्त बिजली, और मुफ्त पानी व महिलाओं को निशुल्क बस यात्रा के नारे भी चुनाव आचार संहिता के दायरे में आते हैं अतः केजरीवाल के भाषणों और विज्ञापन में इन लुभावनी बातों पर संज्ञान ले और तुरंत प्रभाव से रोक लगाये