'उन्होंने मेरी सूरत बदली है मेरा मन नहीं फिल्म छापक की यह लाइन किसी भी घिनौनी नफरत को हरा सकती हैं। कहा जाता है कि अगर आप अपना मन मजबूत कर लेते हैं तो बड़ी से बड़ी मुसीबत कमजोर हो जाती हैं। फिल्म 'छपाक' में जो कुछ दिखाया गया वो छोटी सोच वालों के मुंह पर जोरदार तमाचा हैं। फिल्म छपाक की कहानी एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी है। लक्ष्मी अग्रवाल वो लड़की है जिन्होंने अपनी हिम्मत और हौंसले से नफरत और डर पर विजय हासिल की, और साथ ही समाज की सोच बदलने की भी कोशिश की।
फिल्म छपाक में लक्ष्मी अग्रवाल के किरदार को मालती का काल्पनिक नाम दिया गया है और मालती का रोल दीपिका पादुकोण ने निभाया है। फिल्म का टाइटल सॉन्ग हैं 'कोई चेहरा मिटा के और आंख से हटा के चंद छींटे उड़ा के जो गया छपाक से पहचान ले गया' ये चंद लाइन फिल्म छपाक में मालती के दर्द को बयां करती हैं लेकिन मालती के हौंसले के आगे दर्द कमजोर पड़ जाता हैं। मालती ने ये सब कैसे किया? आइये ले चलते हैं मालती की नफरत, तकलीफ, डर को हराते हुए एक खूबसूरत दुनिया में, जहां प्यार हैं, संघर्ष हैं और आगे बढ़ने की चाहत। फिल्म में दिखाया गया हैं कि 15 साल की मालती आगे बढ़ना चाहती थी, अपने घर वालों का नाम रोशन करना चाहती थी लेकिन एक दिन उनकी एक 'न' ने उनके सारे सपनों पर तेजाब फेर दिया... मालती को एक बड़ी उम्र का सनकी लड़का पसंद करता था और उससे शादी करना चाहता था, 15 साल की मालती ने उसे शादी से इंकार कर दिया। लड़कियों के लिए अपनी खोखली सोच रखने वाला वो लड़का मालती की हस्ति मिटाने के लिए उसपर तेजाब से हमला कर देता है। तेजाब की जलन मालती के चेहरे के साथ-साथ उसके ख्वाबों को भी जलाने लगती है। वह लड़का अपने मकसद में कामयाब भी होने लगता हैं जब समाज में मालती के ऐसिड अटैक पर बातें हो रही होती हैं। समाज के लोगों का कहना था कि एसिड चेहरे पर क्यों फैंका कहीं और फेंक देता ताकि शादी तो हो जाती। कुछ महिलाओं ने मलती के विषय पर कहा कि इतनी नफरत थी तो चाकू मार देता या कुछ और कर देता, तेजाब से जले इस लड़की के चेहरे को देख कर डर लगता हैं। समाज की इस मानकिसता का क्या करेंगे आप? क्या इस शिट को सुनेंगे और खुद पर रोएंगे? कोई कमजोर होता तो शायद ऐसा करता लेकिन मालती बहादुर थी उन्होंने एसिड की खुलेआम बिक्री को बैन करने की जंग लड़ी और जीती भी । मालती की इस सफर को फिल्म में दिखाया गया हैं। मालती के इस सफर में उनका साथ कई लोगों ने दिया उनमें से एक है सामाजिक कार्यकर्ता आलोक दीक्षित जिन्होंने मालती को हिम्मत दी और उन्हें अपने जिंदगी में अहम जगह भी दी।
आलोक दीक्षित ने मालती से शादी की। ऐसा करके आलोक दीक्षित ने तेजाब फेंकने वाले हर शख्स की मानसिक सोच पर गहरा प्रहार किया। लक्ष्मी अग्रवाल के इस सफर को फिल्म बनाकर या शब्दों में लिखकर बयां नहीं किया जा सकता हैं लेकिन डायरेक्टर मेघना गुलजार ने कोशिश अच्छी की है। मेघना ने फिल्म में वो सब दिखाया है जिसका सामना एक एसिड अटैक विक्टिम को करना पड़ता हैं। भारत में दर्द वाली फिल्में लोग कम देखना पसंद करते हैं लेकिन देखने वालों के मन में मेघना की फिल्म छपाक अपनी छाप छोड़ती है। फिल्म की कुछ तस्वीरें हॉल में बैठ लोगों को अंदर तक झकझोर देती हैं। वहां बैठ कर आप एक बार जरूर सोचेंगे की. कोई इतनी नफरत कैसे कर सकता हैं। फिल्म आपको बांध कर रखती हैं। दर्द ज्यादा दिखाया गया है इससे शायद आप बैचेन भी हो सकते हैं कि सब ठीक कब होगा लेकिन जिंदगी की तरह फिल्म में भी आखिर में सब ठीक होता हैं।
मेघना गुलजार ने एक बार फिर अपने निर्देशन का लोहा मनवाया हैं। फिल्म की एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण की बात करें तो पूरी फिल्म में दीपिका पादुकोण कहीं आपको दिखाई नहीं पड़ेंगी क्योंकि दीपिका ने फिल्म में मालती के किरदार को जिया हैं न कि निभाया हैं। एक एसिड पीड़िता के एसिड सर्वाइवर बनने के सफर के दौरान मनोस्थिति में जिस तरह की तब्दीली आती है, उसे उन्होंने जबर्दस्त ढंग से अभिव्यक्त किया है। विक्रांत मैसी ने भी अपना किरदार फिल्म में जिया हैं। विक्रांत मैसी के अभिनय को देख कर लगा की ये बॉलीवुड में लंबा सफर तय करेंगे। मेघना मे फिल्म में असली एसिड अटैक सर्वाइवर को कास्ट किया है। यहीं इस फिल्म को और फिल्मों से अलग बनाती हैं।