वास्तव में विचित्र पर्सनेल्टी थी अमर सिंह


1 अगस्त, 2020 को सिंगापुर में कई महीनों से चल रहे इलाज के बाद राज्यसभा सांसद अमर सिंह ने अंतिम सांस ली। आइए जानते हैं उनके निजी जीवन से लेकर राजनीतिक उठापटक और उस दौर की पूरी कहानी जब अमर सिंह का बोलबाला हुआ करता था। कहते हैं जब एक बिजनेसमैन सियासत की बांह थामता है तो राह मुश्किल नहीं बल्कि आसान हो जाती है, लेकिन अमर सिंह के जीवन में घटनाक्रमों में काफी ट्विस्ट रहा। 



 


कभी सपा में मुलायम सिंह यादव के साथ अमर सिंह की तूती उत्तरप्रदेश से लेकर पूरे देश में बोलती थी लेकिन कौन जानें अमर की सियासती दुर्गति भी होगी और वो दिन भी आएंगे जब पार्टी के झंडे अमर सिंह की प्रोफाइल से रोज बदले जाएंगे। एक वक्त के बाद अमर को इतना मोहताज होना पड़ा कि राजनीतिक पार्टियां ही ढ़ूढ़ें नहीं मिल रहीं थीं जिसे अमर सिंह ज्वाइन कर लें। 


27 जनवरी 1956 ये वो दिन था जब आजमगढ़ उत्तरप्रदेश में हरिशचंद्र सिंह और श्रीमती शैल कुमारी सिंह के यहां पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई, ये वही रत्न अमर सिंह थे, जिन्होंने जन्म तो उत्तरप्रदेश में लिया लेकिन नाम दुनिया में गूंजा। शुरूआती शिक्षा के बाद अमर सिंह ने सेंट जोवियर कॉलेज से (BA) बैचलर ऑफ आर्ट से ग्रेजुएशन की ड्रिग्री ली इसके बाद अमर सिंह ने लॉ की पढ़ाई यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लॉ कोलकाता से की। अमर सिंह ने शिक्षा के उस स्तर तक नियत अध्ययन किया जहां तक हर किसी की सोच होती है। 


साल 1987 में पंकजा कुमारी सिंह के साथ अमर विवाह के बंधन में बंध गए। पंकजा से वह दो बेटियों के पिता भी बने। अमर तब तक बिजनेसमैन बन चुके थे। बतौर उद्योगपति अमर सिंह ने हमेशा काम किया लेकिन आखिरकार राजनैतिक सम्बन्धों के विकसित होने के बाद वो राजनीति में आने से स्वयं को रोक नहीं सके। अपने राजनैतिक सम्बन्धों के लिए भी अमर सिंह जाने जाते रहे।


समाजवादी पार्टी के साथ अमर सिंह का गहरा नाता मुलायम काल के दौरान रहा, राजनीति के उस दौर में मुलायम और अमर की जोड़ी को जय-वीरू की जोड़ी से तुलना की जा सकती थी। अमर सिंह का पंगा आजमगढ़ी चाचा आजम ख़ान से रहा जिसकी वजह सपा में अमर सिंह की एन्ट्री और एग्जिट जारी रही। 2010 में अमर सिंह ने समाजवादी पार्टी के महासचिव होते हुए पार्टी से त्यागपत्र दिया था तो काफी सियासी बवाल मचा था। मुलायम ने 2 फरवरी 2010 को अमर सिंह को पार्टी से निष्कासित किया था।


जिसके बाद राजनीति गलियारे में अमर सिंह ने एक बार फिर एंट्री लेते हुए राष्ट्रीय लोक मंच नाम की पार्टी साल 2011 में बनाई। 2012 में उत्तरप्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में अमर सिंह की पार्टी में यूपी की 403 सीटों में से 360 सीटों में अपने उम्मीदवार उतारने के बावजूद एक भी विधायक नहीं बन सके। इसके बाद 2014 में लोकसभा के चुनावों के दौरान अमर सिंह ने राष्ट्रीय लोक दल को चुना और चुनाव में उतरे लेकिन यहां भी शिकस्त ही हाथ आई। 2016 में सपा में दोबारा शामिल हुए बराबर सम्मान के साथ राज्यसभा के लिये चुन लिए गये। लेकिन यहां भी ज्यादा दिन नहीं टिक सके। 


अमर सिंह ने फिल्म जगत में करीब दो फिल्मों में राजनीतिज्ञ का रोल अदा किया था। जिसमें पहली फिल्म का नाम है, "हमारा दिल आपके पास है" और दूसरी फिल्म "जेडी" थी।


1. साल 1996 में पहली बार राज्यसभा सदस्य के रूप में नामित हुए। 


2. 1997 से 1998 के दौरान टेबल पर रखे पत्रों के लिए बतौर राज्यसभा सदस्य रहे।


3. 1998 में राज्यसभा के सदस्य के तौर पर वित्त मंत्रालय में सलाहकार समिति में शामिल रहे।


4. 1999 में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के लिए अनौपचारिक समिति के सदस्य रहे। 


5. 2001 में स्टॉक मार्केट के घोटालों से जुड़ी संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य में रूप में कार्यरत रहे।


6. 2002 में याचिकाओं पर बनाई गई समिति से जुड़े रहे और 2002 में ही एक बार फिर राज्यसभा के सदस्य बने।


7. 2003-04 में विशेषाधिकार समिति में क्रियाशील रहे।


8. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष भी 2004 से 2009 के दौरान रहे। 


9. 2004 में अमर सिंह प्रयोजन समिति का कार्यभार भी संभाला


10. 2006 में व्यवसायिक सलाहकार समिति के रूप में मौजूद रहे।


11. अमर सिंह ने 2008 में एक बार पुन: राज्यसभा के सदस्य के रूप में शपथ लिया, साथ में सार्वजनिक उपक्रमों की समिति के सदस्य रहे।


12. 2010 में सार्वजनिक स्वास्थ्य के संसदीय मंच के सदस्य रहे।


13. 2016 में सपा के समर्थन से राज्यसभा के सदस्य के रूप में चुने गये।


14. 2016 में फिर से पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के लिए अनौपचारिक समिति के सदस्य रहे।


15. 2017 से 2019 तक औद्योगिक समिति के सदस्य के साथ ही टेलीफोन एडवाईजरी के लिए बनी कमेटी के सदस्य रहे।


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