कोरोना संक्रमण पर नजर रखने और इसकी चेन तोड़ने के लिए पूरी दुनिया प्रयासरत है। आधुनिक तकनीकों पर आधारित कुछ एप इस जंग में कारगर हथियार साबित हो रहे हैं। जिस प्रकार कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए भारत में आरोग्य सेतु एप को इस्तेमाल हो रहा है, उसी प्रकार चीन में ‘हैल्थ कोड’ प्रत्येक नागरिक के लिए अनिवार्य है। उसके उपयोग के लिए मोबाइल फोन में मौजूद क्यूआर कोड का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके जरिये लोगों की ट्रैवल हिस्ट्री तथा स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में जानकारी जुटाई जाती है। क्यूआर कोड को बस स्टॉप, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट पर, किसी ऑफिस में जाने से पहले स्कैन करना होता है। एप से कनेक्ट होने वाला यही क्यूआर कोड प्रत्येक चीनी नागरिक को हैल्थ कार्ड के रूप में दिया जाता है। यह हैल्थ कोड प्राप्त करने के लिए लोगों को अपना नाम, पासपोर्ट नंबर, राष्ट्रीय पहचान नंबर, फोन नंबर, पिछले कुछ दिनों में कोरोना संक्रमितों से सम्पर्क इत्यादि कुछ महत्वपूर्ण निजी जानकारियां साझा करनी पड़ती हैं और अपनी पिछली यात्राओं का विवरण देना होता है। चीन के अलावा कुछ अन्य देशों में भी तकनीक के सहारे कोरोना पर नियंत्रण पाने के इस तरह के प्रयास सफल भी हो रहे हैं।
चीन ने भले ही पूरी दुनिया को ऐसे मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया, जहां इस महामारी के समक्ष बड़े-बड़े सूरमा भी हांफ रहे हैं लेकिन अपने वहां कोरोना प्रसार को रोकने के लिए उसने अपनी ही तकनीकों के सहारे सफलता पाई है। वहां दो एप सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहे हैं वीचैट तथा एलीपे। इन्हीं का उपयोग उसने कोरोना संक्रमण का विस्तार रोकने में किया। हैल्थ कोड स्कैनिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हुए उसने ऐसी मोबाइल ट्रैकिंग प्रणाली विकसित की, जिसके जरिये वहां कोरोना की चेन को तोड़ा गया। कोरोना पर नियंत्रण पाने के बाद भी वहां लोगों की प्रत्येक गतिविधि उनके मोबाइल की स्क्रीन पर दिखने वाले रंगों से तय होती है। जिसके मोबाइल में एप में हरा रंग रहता है, उसे कुछ भी करने की छूट है लेकिन अगर स्क्रीन पर यह रंग लाल नजर आता है तो ऐसे व्यक्ति की तमाम गतिविधियों पर अंकुश लग जाता है और उसे कुछ दिनों के लिए आइसोलेशन में रहना अनिवार्य हो जाता है। एप में पीला रंग हो तो ऐसे व्यक्ति के लिए सात दिन की क्वारंटीन अवधि अनिवार्य है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर के तापमान और उसकी ट्रैवल हिस्ट्री के आधार पर ही उसे कलर कोड दिया जाता है, जिससे तय होता है कि उस पर कोई प्रतिबंध लागू होंगे या नहीं। चीन में मोबाइल पेमेंट के लिए विख्यात ‘अलीपे’ के अनुसार चीन के 200 शहरों में लोग इस एप का इस्तेमाल कर रहे हैं।
हांगकांग में चीन से आने वाले लोगों की लोकेशन पर नजर रखने के लिए व्हाट्सअप का इस्तेमाल किया जाता रहा है। क्वारंटीन में रखे जाने पर ऐसे लोगों के घर से बाहर निकलते ही प्रशासन को तुरंत सूचना मिल जाती है। अमेरिका इस समय कोरोना की सबसे बड़ी मार झेल रहा है, इसलिए वहां भी अधिकांश अमेरिकी कोरोना से बचने के लिए विभिन्न एप की मदद ले रहे हैं। वहां कोरोना के लक्षणों की पहचान करने वाले एप को लोगों द्वारा बड़ी संख्या में डाउनलोड किया जा चुका है। ऐसे एप बनाने वालों का मानना है कि इससे लोगों को पता चलेगा कि कुछ लोगों में कोरोना संक्रमित होने की ज्यादा संभावना क्यों होती है। इससे यह जानकारी भी मिलेगी कि किन क्षेत्रों में कोरोना ज्यादा फैला तथा आम सर्दी-जुकाम से यह कैसे अलग है।
दक्षिण कोरिया दुनिया का पहला ऐसा देश है, जिसने कोरोना से निपटने के लिए बहुत पहले ही तकनीक का सहारा लिया, जिसका उसे काफी फायदा भी मिला। उसे देखते हुए ही दुनिया के कई देशों ने इस ओर तेज गति से कदम बढ़ाए। दक्षिण कोरिया के रोग नियंत्रण और रोकथाम केन्द्र ने एक मोबाइल एप से नियंत्रित होने वाली कोविड-19 स्मार्ट प्रबंधन प्रणाली (एसएमएस) तैयार की थी। इसके अलावा क्वारंटीन किए गए लोगों पर नजर रखने के लिए स्मार्ट रिस्टबैंड का भी इस्तेमाल किया गया। दक्षिण कोरिया ने व्हाट्सअप जैसा ही एक ऐप बनाया है, जो किसी व्यक्ति के कोरोना संक्रमित हो जाने पर आम दिनचर्या से अलग गतिविधियां करते पाए जाने पर तुरंत अलर्ट देता है। वहां ‘कोरोना मैप’ नामक एक ऐसी एप सक्रिय है, जो प्रशासन को सूचना देती है कि कोरोना से प्रभावित व्यक्ति किन-किन लोगों से मिला और किस रूट से कहां-कहां गया। इस एप के इस्तेमाल से वहां के व्यक्ति उन स्थानों का पता कर सकते हैं, जहां कोरोना से संक्रमित कोई व्यक्ति भर्ती हुआ हो। इसमें मरीज की लोकेशन से लेकर उसके अस्पताल की जानकारी और वो कब से पीड़ित है, ये सभी जानकारियां भी मिल जाती हैं। दक्षिण कोरिया में ‘कोरोना 100एम’ नामक जीपीएस आधारित एक और एप का भी सक्रिय रहा है। यह एप लोगों को 100 मीटर की दूरी से ही कोरोना वायरस के बारे में अलर्ट करने में सक्षम है। यह उपयोगकर्ता को उसकी लोकेशन के 100 मीटर के दायरे में संक्रमित व्यक्ति की जानकारी देता है।
जर्मनी में एप्पल तथा गूगल की मदद से कोरोना संक्रमण की ट्रेसिंग की जाती है और एप यूजर्स का डाटा उनके फोन में सेव करने के बाद सरकार को अपडेट दिया जाता है। आस्ट्रेलिया में कोरोना संक्रमितों को ट्रैक करने के लिए ब्लूटूथ के सिग्नल पर आधारित ‘कोविड सेफ’ एप इस्तेमाल हो रही है। इसके जरिये संक्रमित व्यक्ति के डेढ़ मीटर की रेंज में आने वाले सभी लोगों को ट्रैक किया जाता है। इजरायल में भी कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए एप का इस्तेमाल कर कांटैक्ट ट्रेसिंग की जा रही है। रूस में लोगों की गतिविधियों का पता लगाने के लिए क्यूआर कोड लागू किया हुआ है। ब्रिटेन में लंदन के किंग्स कॉलेज अस्पताल के शोधकर्ताओं द्वारा बनाया गया एप ‘सी-19 कोविड सिम्पटम्स ट्रैकर’ अलर्ट देता है कि कहां कोरोना संक्रमण का खतरा है। इसके अलावा एप के जरिये मरीज स्वयं अपने लक्षण भी बता सकता है। इसी प्रकार कोरोना संक्रमितों की ट्रेसिंग के लिए ऑस्ट्रिया में ‘स्टॉप कोरोना’ एप तथा साइप्रस में ‘कोव ट्रेसर’ एप का उपयोग किया जा रहा है।
सिंगापुर में भी कांटैक्ट ट्रेसिंग स्मार्टफोन एप के जरिये अधिकारी कोरोना मरीजों का आसानी से पता लगा सकते हैं। वहां ‘ट्रेस टूगेदर’ एप के जरिये कोरोना संक्रमितों को ट्रैक करने का प्रयास किया जा रहा है। एप के जरिये सरकार के पास उपयोगकर्ता का पूरा डाटा रहता है, जिससे आसानी से पता चल जाता है कि वह कब एप का इस्तेमाल करने वाले दूसरे उपयोगकर्ता के सम्पर्क में आया और कितनी देर तक उसके सम्पर्क में रहा। इस एप पर कोई भी व्यक्ति उन स्थानों का पता कर सकता है, जहां संक्रमण का खतरा ज्यादा है। वहां इस एप की मदद से ऐसे लोगों को ट्रैक करने में सफलता भी मिली, जो बाद में कोरोना संक्रमित पाए गए। यह एप उपयोगकर्ता की लोकेशन को ट्रैक करते हुए ब्लूटूथ से एप के दूसरे उपयोगकर्ताओं के सम्पर्क में आने का रिकॉर्ड रखता है। बहरहाल, विभिन्न देशों में तकनीक पर आधारित अलग-अलग तरह के एप कोरोना ट्रेसिंग में काफी कारगर साबित हो रहे हैं।