उत्तर प्रदेश की योगी सरकार विरोध−प्रदर्शन के नाम पर प्रदेश में अराजकता का माहौल पैदा करने वालों के साथ सख्ती के साथ पेश आ रही है, यह दिल्ली सहित तमाम राज्यों के लिए मिसाल है। अगर कोई धरना−प्रदर्शन सुनियोजित तरीके से देशद्रोही ताकतों द्वारा चलाया जा रहा हो तो फिर उसे कुचलने के लिए सख्ती करना लाजिमी है। इसी सख्ती का असर है जो यूपी में अराजकता फैलाने वालों के हौसले पस्त पड़े हैं। अलीगढ़ और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में समय−समय पर कुछ देशद्रोही ताकतें सिर उठाने की कोशिश करती जरूर हैं, लेकिन पुलिस की सख्ती उनके हौसले कुचलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती है। देश की जनता हो या फिर सियासतदार अथवा हमारी अदालतें उनको यह समझना ही होगा कि हम संविधान से बंधे हुए हैं।
अगर नागरिकता संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित होकर कानून बन चुका है तो फिर इसको लेकर विवाद बेमानी है। इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश हो या फिर महाराष्ट्र अथवा देश का कोई अन्य हिस्सा जिसमें दिल्ली भी शामिल है, में जगह−जगह चल रहा धरना प्रदर्शन लाखों लोगों की नाक में दम किए हुए है। उसके यदि खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे हैं तो इसकी एक वजह प्रदर्शनकारियों के प्रति अपनाया जा रहा उदार रवैया भी है। मुट्ठी भर लोग सड़क पर कब्जा करके लाखों नागरिकों के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं और अदालतें तत्काल किसी फैसले पर पहुंचने के बजाय तारीख पर तारीख दे रही हैं। जबकि यह तथ्य सबके सामने है कि शाहीन बाग की सड़क बंद होने से हर दिन लाखों लोगों को परेशानी उठानी पड़ रही है। आधे−पौने की घंटे की दूरी तीन−चार घंटे में तय करने को मजबूर लाखों लोगों का समय, श्रम और धन तीनों का नुकसान हो रहा है।
हैरत की बात यह भी है कि ऐसे आंदोलनों की वजह एक तो काल्पनिक है और दूसरे इसमें कोई तर्क भी नजर नहीं आ रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा के दौरान दिल्ली को जिस तरह हिंसा की आग में झोंक कर देश की छवि खराब करने की कोशिश की गई इस बात का अहसास हमारी व्यवस्थाओं को होना ही चाहिए। मामला जब सरकार के किसी बड़े फैसले से जुड़ी संवैधानिक स्थिति का हो तो अदालतों के लिए भी जरूरी हो जाता है कि वह जल्द से जल्द फैसला सुनाएं, स्पष्ट निर्देश दें ताकि सभी व्यवधान दूर हो सकें।