देश का वह राज्य, जहां बिना ''वीजा'' के नहीं जा सकते भारतीय


दुनिया के कई देश ऐसे हैं जहां घूमने के लिए आपको वीजा की जरूरत नहीं होती। लेकिन वहीं अपने ही देश में ही कुछ ऐसी जगह हैं जहां घूमने के लिए आपको वीजा जैसे कागजात की जरूरत होती है। यहां आपको उस राज्य से परमिट लेना होता है। 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 में कुछ तब्दीली की गई जिससे ये अनुच्छेद प्रभावी नहीं रहा। लेकिन अब भी मुल्क में कई ऐसे राज्य हैं जिनके पास विशेष दर्जा है और विशेष दर्जे से आशय ये कि अब भी आप उन राज्यों में बिना सरकारी इजाजत के या तो दाखिल नहीं हो सकते या फिर एक तय वक्त से ज्यादा रूक नहीं सकते हैं। सबसे पहले आपको चार लाइनों में बताते हैं कि इनर लाइन परमिट (आईएलपी) है क्या?



 



  • इनर लाइन परमिट एक यात्रा दस्तावेज़ है, जिसके जरिए  देश का कोई भी नागरिक देश के किसी खास हिस्से में घूमने के लिए जाने के लिए या फिर नौकरी करने के लिए जा सकता है। 

  • इसे बंगाल-ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्यूलेशन एक्ट 1873 के तहत जारी किया जाता था। 

  • इसकी शुरूआत अंग्रेजों के जमाने से हुई थी जब अंग्रेजों ने अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए इस दस्तावेज को बनाया था।

  • आजादी के बाद भी इनर लाइन परमिट लागू रहा लेकिन वजह बदल गई।


 

भारत सरकार के अनुसार आदिवासियों की सुरक्षा के लिए ये इनर लाइन परमिट जारी किया जाता है। आसान भाषा में कहे तो ये इनर लाइन परमिट भारत सरकार की ओर से भारत के ही लोगों को दिया जाने वाला एक तरह हा वीजा है। 

दो तरह के परमिट होते हैं

एक तो टूरिस्ट इनर लाइन परमिट- इसकी अवधि कम वक्त के लिए होती है। ये एक हफ्ते के लिए जारी किया जाता है। 

जॉब इनर लाइन परमिट- इसकी अवधि ज्यादा होती है। एक साल  का इनर लाइन परमिट बनाया जाता है। 

भारत के तीन राज्य अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम इन राज्यों के किसी भी हिस्से में जाने के लिए इनर लाइन परमिट की जरूरत होती है। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में भी ऐसा ही है। लेह जिले में जाने के लिए इनर लाइन परमिट की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा लक्ष्यद्वीप के लिए भी इनर लाइन परमिट की जरूरत होती है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बार्डर से लगते राज्य राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के बार्डर के कुछ इलाकों पर जाने के लिए भी इनर लाइन परमिट की जरूरत होती है। पूर्वी सिक्किम के कुछ इलाकों में जाने के लिए भी इनर लाइन परमिट की जरूरत होती है। 

 

 

अरूणाचल प्रदेश में कहीं भी दाखिल होने पर इस परमिट की जरूरत पड़ेगी। ये परमिट अरूणाचल प्रदेश सरकार की सेक्रेटरी की ओर से जारी किया जाता है। 1 नवंबर 2019 को पूर्वोत्तर के एक और राज्य मेघालय की कैबिनेट ने भारत के दूसरे राज्य के रहने वाले किसी भी नागरिक को 24 घंटे से ज्यादा का वक्त बिताने के लिए मेघालय सरकार के पास रजिस्ट्रेशन करवाने का निर्णय किया। मेघालय सरकार ने मेघालय रेसिडेंट सेफ्टी एंड सिक्योरिटी एक्ट 2016 में बदलाव को मंजूरी दे दी और ये तत्तकाल प्रभाव से लागू भी हो गया। हालांकि केंद्रीय कर्मचारियों और सरकारी कर्मचारियों को इस नियम से छूट मिली हुई है।

कैसे एवं कहां बनता है आईएलपी

प्रतिबंधित क्षेत्रों की यात्रा के लिए ये दस्तावेज़ बनवाने के लिए आपको अपने 10-20 पासपोर्ट साइज़ फोटो के साथ ही कोई एक सरकारी पहचानपत्र की फोटोकॉपी की ज़रूरत होती है। फोटो सफ़ेद बैकग्राउंड वाली ही लें। बाकी अच्छा हो कि आप अपने साथ पेन और फार्म पर फोटो चिपकाने के लिए गम का छोटा डिब्बा रख लें। अक्सर ये चीजें अनचाही परेशानी बन जाती है ध्यान दें की सरकारी पहचान पत्र में आपका पेन कार्ड मान्य नहीं है। वहीँ 10 या उससे ज्यादा फोटो ले जाने से आपको एक राज्य से दूसरे या एक डिस्ट्रिक्ट से दूसरे के लिए नया आईएलपी बनाने में सहूलियत रहेगी क्योंकि कई जगह नए आईएलपी की ज़रूरत आन पड़ती है।

 

सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था मामला

बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रूख किया था। याचिकाकर्ता ने इनर लाइन परमिट को अपने ही देश में वीजा लेने की तरह बताया था। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव की मनाही), 19 (स्वतंत्रता), 21 (जीवन) के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया था। उन्होंने दलील दी थी कि नगा आदिवासियों के संरक्षण लिए ये परमिट बनाया गया लेकिन यहां अब ईसाई ज्यादा हो गए हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था।  

भारतीय संविधान की छठवीं अनुसूची

वर्ष 1971 के मुक्ति-संग्राम के बाद बांग्लादेश से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक भागकर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में पहुंचे थे। उसके बाद पूर्वोत्तर राज्यों में इनर लाइन परमिट की मांग को बल मिला था।

फिलहाल पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों में इनर लाइन परमिट लागू नहीं होता है। हालांकि पूर्वोत्तर के राज्यों में इसकी मांग के समर्थन में आवाज़ें उठती रही हैं।

 

नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन की ये मांग रही है कि पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में इनर लाइन परमिट व्यवस्था लागू की जाए।

नागरिकता संशोधन विधेयक की पृष्ठभूमि में इनर लाइन परमिट के साथ भारतीय संविधान की छठवी अनुसूची का भी ज़िक्र हुआ है। भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में आने वाले पूर्वोत्तर भारत के इलाकों को नागरिकता संशोधन विधेयक में छूट दी गई है।

छठी अनूसूची में पूर्वोत्तर भारत के असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्य हैं जहां संविधान के मुताबिक स्वायत्त ज़िला परिषदें हैं जो स्थानीय आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है।

 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 में इसका प्रावधान किया गया है। संविधान सभा ने 1949 में इसके ज़रिए स्वायत्त ज़िला परिषदों का गठन करके राज्य विधानसभाओं को संबंधित अधिकार प्रदान किए थे।

छठी अनूसूची में इसके अलावा क्षेत्रीय परिषदों का भी उल्लेख किया गया है। इन सभी का उद्देश्य स्थानीय आदिवासियों की सामाजिक, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान बनाए रखना है।

इसका मतलब ये हुआ कि अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 से पहले आए हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई यानी गैर-मुसलमान शरणार्थी भारत की नागरिकता हासिल करके भी असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में किसी तरह की ज़मीन या क़ारोबारी अधिकार हासिल नहीं कर पाएंगे।साभार-अभिनय आकाश