दलित- आदिवासियों के नज़रिए से बजट का विश्लेषण 

 



 


केंद्रीय बजट 2020-21 के आने के बाद से ही इसपर चर्चाओं का सिलसिला शुरू हो गया है।  दलित आदिवासी शक्ति अधिकार  मंच (दशम),  डॉ. अंबेडकर कोऑपरेटिव फेडरेशन, राष्ट्रीय जनवादी आन्दोलन संघ (एनएपीएम)  ने  दलित, आदिवासियों  और सफाई कर्मचारियों हेतु बजट में प्रावधानों पर चर्चा करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की। बजट विश्लेषण विशेषज्ञ, उमेश बाबू ने बताया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए विभिन्न योजनाओं के लिए धन आवंटित करने के मामले में बजट में कई असंगतियाँ हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ऊपरी तौर पर देखने में ऐसा लगता है कि बजट के तहत आवंटन लगातार बढ़ रहे हैं लेकिन गहराई से देखने पर पता चलता है कि बजट में भारी गोलमाल किया गया है। एमएसएमई मंत्रालय के अधीन एससी / एसटी के लिए 13 योजनाएं जिनमें 2017-18 में कुल 543 करोड़ का व्यय किया गया था,  उन्हें मनमाने ढंग से बंद कर दिया गया है और इनका आवंटन शून्य हो गया है। उल्लेखनीय है कि इनमें खादी अनुदान (केजी) और खादी सुधार विकास पैकेज (एडीबी सहायता) जैसी योजनाएं शामिल हैं, जो विशेष रूप से ग्रामीण आबादी के लिए फायदेमंद थीं। उन्होंने यह भी कहा कि हर साल कई नई योजनाओं की घोषणा की जाती है और जब तक वे अंतिम व्यक्ति तक पहुंचती हैं, तब तक उन्हें अगले बजट में ख़त्म कर दिया जाता है। परिचित और पारंपरिक कार्यक्रमों को अचानक सम्पात करने की बजाय, मौजूदा योजनाओं के सुधार पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। उन्होंने बजट को औसत और टेढ़ी शब्दावलियों का शिकार बताया और आरोप लगाया कि इसमें हाशिये के वर्गों की अनदेखी की गई है।


दशम में सामाजिक कार्यकर्ता एना ज़फर ने उल्लेख किया कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की क्रेडिट गारंटी फंड के तहत एससी के लिए वर्ष 2020-21 में 1 करोड़ रुपये और एसटी के लिए इससे भी कम धन आवंटित किया गया है। ध्यान देने योग्य है कि जिस उड़ान योजना ने अपनी 19वीं वार्षिक रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि “वर्ष 2019 में संचयी गारंटी राशि रु. 1,75,961 करोड़ रही। इसी तरह, हाशिए के लोगों की आर्थिक आत्मनिर्भरता हेतु अन्य योजनाओं के लिए आवंटन में बेतरतीब उतार-चढ़ाव रहा है। सरकार से सवाल किया जाना चाहिए कि उद्यमिता के लिए एससी / एसटी के लिए आवंटन  इतना अनुपातहीन क्यों है।


एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता मोहिनी ने कहा कि जीडीपी बढ़ाने के बारे में सरकार के दावे त्रुटिपूर्ण हैं क्योंकि सरकार द्वारा पहले लिए गए भुगतान किये जाने वाले ऋण के लिए ब्याज और राजकोषीय घाटा भी साथ- साथ बढ़ रहा है। रेवेन्यू फोरगोन, जो कि पूंजीपतियों को दिया जाने वाला सीधा लाभ है, में भी वृद्धि हुई है और पिछले 10 वर्षों में कुल रेवेन्यू फोरगोन सरकार द्वारा भुगतान किए गए कुल ब्याज के लगभग करीब है। उन्होंने यह भी बताया कि सफाई कर्मचारियों के लिए आवंटित  धन न केवल अपर्याप्त है, बल्कि इस आवंटन में विवेकपूर्ण वर्गीकरण की कमी है । उनके लिए दिए जाने वाले धन का बहुत बड़ा हिस्सा महज दो योजनाओं में खपत हो जाता है। अशोक टांके, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो पिछले 20 वर्षों से सफाई कर्मचारियों के साथ काम कर रहे हैं, ने कहा कि सफाई कर्मचारियों की आवश्यकताओं जैसे सफाई उपकरण, प्रशिक्षण, चिकित्सा सुविधाएं जरूरतों को पूरा करने के लिए बजट का आवंटन भी नहीं है। गौरतलब है कि  कि बहुसंख्यक सफाई कर्मचारियों और मैला ढोने वालों एससी श्रेणी से आते हैं।


प्रेस कॉन्फ्रेंस ने कुछ चल रही योजनाओं को बंद करने में मनमानी जैसे मुद्दों को भी संबोधित किया, जो इन योजनाओं की पहुँच की कमी का एक कारण है, खासकर दूरदराज और ग्रामीण भारत में। इसके कारण कागज़ी जरूरतों को पूरा करने में ही  समय और संसाधन खर्च हो जाते हों और नौकरशाही देरी होती और लाभार्थियों को परेशानी का कारण बनता है।


यह भी कहा गया कि एससी और एसटी के लिए बजट का आवंटन बढ़ता जा रहा है। हालाँकि, जनसंख्या में उनकी हिस्सेदारी की तुलना में प्रतिशत आबंटन अभी भी काफी नीचे है। यह उन विभिन्न प्रावधानों के विरुद्ध है जिनमें यह जनादेश है कि एससी और एसटी आबादी को दिया जाने वाला प्रत्यक्ष लाभ उनकी जनसंख्या प्रतिशत के अनुसार होना चाहिए।


उन्होंने दलितों, आदिवासियों और सफाईकर्मियों के दृष्टिकोण से बजट का विश्लेषण करते हुए एक विस्तृत रिपोर्ट भी जारी की।