उत्तर प्रदेश में तीन दशकों से हाशिये पर पड़ी कांग्रेस आजकल हर वह पैंतरा आजमा रही है, जिससे यूपी की राजनीति में वह फिर से उस मुकाम को हासिल कर सके, जहां उसकी तूती बोला करती थी। एक समय कांग्रेस की आवाज को अनदेखा करना किसी के लिए आसान नहीं था, लेकिन सियासी थपेड़ों में कभी यूपी पर राज करने वाली कांग्रेस अब नंबर चार की पार्टी बनकर रह गई है। उसका वोट प्रतिशत भी 6−7 प्रतिशत पर सिमट गया है। सबसे आश्चर्यजनक यह है कि एक तरफ भाजपा, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की सियासत में समय−समय पर उतार−चढ़ाव देखने को मिलता रहता है, लेकिन कांग्रेस का ग्राफ गिरता ही जा रहा है। अगर यह कहा जाए कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ अमेठी और रायबरेली ही ऐसे दो इलाके बचे हैं, जहां थोड़ी−बहुत गांधी परिवार की राजनैतिक हैसियत देखने को मिल जाती थी लेकिन पिछले दो लोकसभा चुनाव से यह परिपाटी भी बदल गई। अब तो कांग्रेस रायबरेली तक ही सिमट गई है, जहां से सोनिया गांधी सांसद हैं जबकि टीवी कलाकार और भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी से अमेठी हारकर राहुल गांधी केरल पलायन कर गए हैं। जहां की मुस्लिम बाहुल्य वायनाड सीट से वह सांसद हैं।
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में अमेठी संसदीय सीट से भाजपा प्रत्याशी स्मृति इरानी ने राहुल गांधी को जबरदस्त टक्कर दी और फिर ठीक पांच साल बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ने राहुल को उनके गढ़ में मात देते हुए कांग्रेस को ऐसा झटका दिया जो बरसों उसे टीस देता रहेगा। कांग्रेस अमेठी हार गई। इसके बारे में जब भाजपाइयों से पूछा जाता है तो वह व्यंग्यात्मक लहजे में कहते हैं कि अमेठी तो बानगी थी, 2024 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली भी कांग्रेस के हाथ से निकल जाएगा। भाजपा वाले यह दावा हवा में नहीं कर रहे हैं। कांग्रेस भी रायबरेली को लेकर बेचैन रहती है। ऐसा लगता है कि अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस-भाजपा के बीच चूहा−बिल्ली का खेल चल रहा है। गत दिनों कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रायबरेली का दौरा किया था। अब केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की बारी है। वह अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी के दौरे पर हैं। अमेठी में जीत के बाद स्मृति ईरानी यहां लगातार एक्टिव रहती हैं। वह ऐसा कोई काम नहीं करती हैं जिससे कांग्रेस को फिर से पैर पसारने का मौका मिल सके। इसी के चलते यूपी में सबसे बड़ी राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता के तौर पर गांधी परिवार और स्मृति की जद्दोजहद जारी है। स्मृति लगातार अमेठी और रायबरेली में लोगों के स्मृति पटल पर छाए रहना चाहती हैं। प्रियंका और सोनिया ने 22 जनवरी को कांग्रेस के जिला और शहर अध्यक्षों के ट्रेनिंग कैंप में शिरकत की थी। तब वहां कांग्रेस की विचारधारा और राजनीतिक दर्शन पर मंथन के साथ ही आरएसएस के बारे में एक बुकलेट भी बांटी गई थी। उधर, स्मृति ईरानी, गांधी परिवार के गढ़ पर कब्जा जमाने के बाद भी चैन से नहीं बैठी हैं। वह बीच−बीच में अमेठी का दौरा करते हुए अपनी सक्रियता दिखाती रहती हैं। इसी क्रम में ईरानी 06 फरवरी को अमेठी में कई विकास योजनाओं के लोकार्पण के साथ ही रायबरेली के लालगंज में गंगा यात्रा में भी भाग लेने जा रही हैं।
स्मृति ईरानी अमेठी की जनता से अपने भावनात्मक रिश्ते लगातार मजबूत कर रही हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के ठीक बाद स्मृति की वह तस्वीर भी याद होगी, जब उन्होंने अमेठी पहुंच कर अपने करीबी सुरेंद्र प्रताप सिंह की अर्थी को कंधा दिया था। सुरेंद्र की उनके घर में घुसकर हत्या कर दी गई थी। सुरेंद्र ने 2019 लोकसभा चुनाव में स्मृति के चुनाव प्रचार में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। उनको करीब से जानने वाले लोगों के मुताबिक कई गांवों में सुरेंद्र का खासा प्रभाव था, जिसका फायदा इस चुनाव में स्मृति ईरानी को मिला था।
हालत यह है कि गए हैं कि स्मृति को अब अमेठी का मोदी कहा जाने लगा है, क्योंकि 2014 में मोदी लहर में भी कांग्रेस के अजेय दुर्ग अमेठी को बीजेपी भेद नहीं पाई थी, उसे स्मृति ने अपनी मेहनत से 2019 में भेद दिया। स्मृति ईरानी का अमेठी का सियासी सफर काफी दिलचस्प रहा। 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बावजूद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के हौसले पस्त नहीं पड़े। इन्हीं हौसलों के बल पर 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर ईरानी ने राहुल गांधी को टक्कर देने की ठानी और गांधी परिवार के 50 साल पुराने गढ़ अमेठी को फतह कर दिया। स्मृति न केवल चुनाव जीतीं, बल्कि अपने नाम अनोखा रेकॉर्ड भी दर्ज करा लिया। कांग्रेस के किसी राष्ट्रीय अध्यक्ष को हराने वाली स्मृति पहली भाजपा प्रत्याशी बन गईं। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को 55,120 वोटों से करारी शिकस्त दी थी।
बहरहाल, 2014 में अमेठी में राहुल से मिली हार के बाद भी स्मृति ने हौसलों की उड़ान जारी रखी थी, जिसका फायदा उन्हें 2019 में मिला। अमेठी में विकास कार्यों को सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने लगातार दौरे करते हुए जनता के बीच आधार बनाया। करीब 60 दिनों तक स्मृति गौरीगंज में एक किराए के घर में ठहरीं। 2014 से 2019 के दौरान स्मृति ने अमेठी के 63 दौरे किए। सबसे बड़ा मौका आया मार्च 2019 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेठी में आधुनिक क्लाशनिकोव−203 राइफलों के निर्माण के लिए बनी ऑर्डिनेंस फैक्ट्री का लोकार्पण किया। यह सब ऐसे वक्त में हो रहा था जब राहुल गांधी ने यूपीए के शासनकाल में मंजूर मेगा फूड पार्क योजना छीनने और प्रियंका गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान स्मृति पर तीखा हमला करते हुए आरोप लगाया था कि वह अमेठी के लोगों को गरीब और भिखारी समझती हैं। कहीं न कहीं इस बयान ने अमेठी के उन लोगों की नाराजगी बढ़ाई जो पहले से ही गांधी परिवार के यहां कथित रूप से कम समय गुजारने की वजह से खफा थे।
2014 में अपनी हार के एक महीने के अंदर स्मृति यहां दोबारा लौटीं और गांव वालों के लिए यूरिया−अमोनिया खाद का इंतजाम सुनिश्चित कराया। अमेठी रेलवे स्टेशन पर एक रिजर्वेशन सेंटर खुला। इसके साथ ही उन्होंने केंद्रीय रेल मंत्री से अमेठी होते हुए उतरेटिया और वाराणसी के बीच रेल विद्युतीकरण का काम कराया। यही नहीं अमेठी−रायबरेली के बीच संपर्क मार्गों से लेकर नेशनल हाइवे और सैनिक स्कूल के लिए भी स्मृति ने पहल की।
एक तरफ गांधी परिवार खास मौकों पर अमेठी−रायबरेली में नजर आता था, वहीं स्मृति ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह लगातार तिलोई, सलोन, जगदीशपुर, गौरीगंज और अमेठी विधानसभा का दौरा करती रहीं। यही वजह थी कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस−एसपी के गठबंधन को झटका देते हुए भारतीय जनता पार्टी ने चार विधानसभा सीटों पर कब्जा जमा लिया। अपने पूरे प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने स्थानीय विधायकों जैसे कि गरिमा सिंह, दल बहादुर, मयंकेश्वर शरण सिंह को तरजीह देते हुए सभी जातियों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया।
लब्बोलुआब यह है कि यूपी को लेकर कांग्रेस भले ही बड़े−बड़े दावे कर रही हो, लेकिन पार्टी के लिए यूपी तो दूर रायबरेली बचना भी मुश्किल होता जा रहा है। स्मृति ने गांधी परिवार का चौतरफा घेर रखा है। प्रियंका गांधी का भी जादू नहीं चल पा रहा है। इसकी वजह है जनता का गांधी परिवार से विश्वास उठता जाना। अमेठी में ईरानी द्वारा जो विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, उससे रायबरेली की जनता में भी यह उम्मीद जग गई है कि अगर उन्होंने भी अमेठी की तरह गांधी परिवार से छुटकारा पा लिया तो उनके यहां भी विकास की गंगा बह सकती है।
-अजय कुमार